शिमला। हिमालयन वन अनुसन्धान संस्थान, शिमला द्वारा आज़ादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत “ग्रामीण समुदायों हेतु पर्यावरण स्वच्छता जागरूकता” विषय पर 9 जनवरी, 2023 को जस्सल, साविधार पंचायत करसोग, मंडी (हि॰प्र॰) में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में हिमालयन वन अनुसन्धान संस्थान, शिमला के विस्तार प्रभाग के प्रभागाध्यक्ष डॉ. जगदीश सिंह, ने “विभिन्न पर्यावरण प्रदूषण और इनके दुष्प्रभाव एवं निवारण” विषय पर व्यख्यान दिया । उन्होंने शहरीकरण और औद्योगीकरण, खनन, जीवाश्म ईंधन का जलना, प्लास्टिक और कण पदार्थ इत्यादि को पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण बताया । उन्होंने कहा कि इन सभी कारणों से हमारे वायु, जल एवं स्थल प्रदूषित होते है । पर्यावरण प्रदूषण से ग्लोबल वार्मिंग हो रही है, जिसके फलस्वरूप हिमालयी क्षेत्रों ग्लेशियर तेज़ी से पिघल रहे है, जो कि चिंता का विषय है । धरती पर केवल कुल जल का 5 प्रतिशत जल ही पीने योग्य है । उन्होंने उपस्थित लोगों को जड़ी बूटियों के बारे में भी बताया तथा क्षेत्र के लिए उपयुक्त जड़ीबूटियाँ भी सुझाई ।
इस अवसर पर निदेशक, हिमालयन वन अनुसन्धान संस्थान, शिमला डॉ संदीप शर्मा, ने भी पर्यावरण संरक्षण पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि प्रति वर्ष उत्पादित 380 मिलियन टन प्लास्टिक में से लगभग 31 मिलियन टन पर्यावरण में और लगभग 8 मिलियन समुद्र प्रवेश करता है । उन्होंने लोगों से एकल उपयोग होने वाली चीजों जैसे कि प्लास्टिक का उपयोग न करने का आह्वाहन भी किया । उन्होंने विश्व भर में पेयजल में हो रही कमी और गिरते भू- जलस्तर के बारे में भी चिंता व्यक्त की तथा उपस्थित कोगों से वर्षाजल को व्यर्थ बहने से रोककर इसे नालियों/पाइप लाइनों के माध्यम से इस प्रकार संग्रहित करने का आग्रह किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने आधुनिक कृषि पद्धतियों जैसे कि कीटनाशकों,और उर्वरकों से मिट्टी प्रदूषित के विषय में भी लोगों को अवगत किया । उन्होने सॉयल हेल्थ कार्ड एवं पहाड़ी की ढलान तथा दिशा के महत्व पर भी प्रकाश डाला और कहा कि मिट्टी की जांच से अपने लाभ को अधिक एवं चिरंजीवी किया जा सकता है । उन्होने किसानों को साविंधार पंचायत की भौगोलिक स्थिति के लिए उपयुक्त वनस्पति भी सुझाई । एकल प्रयोग प्लास्टिक पर बैन के चलते टौर उगाने की सलाह दी तथा इसके उद्योग (पत्तल बनाने का काम) के उज्ज्वल भविष्य की आशा जतायी । उन्होने किसानो को खेत इस प्रकार की कंटूर के बनाने का सुझाव दिया ताकि इस प्रकार के सूखे क्षेत्र में नमी लंबे समय तक उपलब्ध रह सके । डॉ॰ शर्मा ने वर्षा जल भंडारण की सलाह दी और कहा कि पारंपरिक तालाब और जल स्त्रोतों का ध्यान रखना चाहिए उससे जल कि उपलब्धता के अलावा और भी लाभ प्राप्त होते हैं । उन्होने केंचुआ की खाद बने का भी सुझाव दिया ।
किसानों के आग्रह पर डॉ॰ शर्मा ने फूल – लकड़ी (Lantana camara)से बचाव का तरीका भी समझाया , उन्होने कहा कि इसे समाप्त करने के लिए लगातार 2.5 वर्ष तक 8-9 बार काटना पड़ता है । इसे जमीन में 4 इंच नीचे तक जड़ से काट कर पौधे को उल्टा अर्थात जड़ ऊपर टहना नीचे करके सूखने देना चाहिए । डॉ॰ शर्मा ने बदलते मौसम पर चिंता व्यक्त की और कहा कि हमें भी यथा संभव अपने आस पास जितना हो सके खाली पड़े भू-क्षेत्र में अधिक से अधिक पेड़ लगाने का प्रयास करना चाहिए । उन्होने पदम श्री, फ़ारेस्ट मैन के नाम से विख्यात श्री यादव जी के जीवन पर प्रकाश डाल कर लोगों को प्रोत्साहित किया ।
डॉ॰ जोगिंदर सिंह चौहान, मुख्य तकनीकी अधिकारी हिमालयन वन अनुसन्धान संस्थान, शिमला ने संस्थान के कार्यक्षेत्र तथा कार्यों पर प्रकाश डाला । इसके अलावा उन्होने कहा कि हमे बच्चो में शुरू से स्वच्छता की आदतें डालकर उन्हे पर्यावरण के प्रति जागरूक करना चाहिए, ताकि अभी से उनके मन मस्तिष्क में पर्यावरण के प्रति जागरूकता एवं सकारात्मकता विकसित हो । डॉ॰ चौहान ने मोटे अनाज (मिलेट्स) जैसे कि बाजरा, ज्वार, ज्वार, रागी, कोदो, कुटकी आदि प्रमुख अनाज के बारे में भी बताया कि यह अनाज हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होने के साथ साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भी प्रासंगिक हैं, क्योंकि मोटे अनाजों की खेती कम पानी, उर्वरक और कीटनाशकों के साथ कम उपजाऊ मिट्टी में भी की जा सकती है । स्थानीय लोगों ने संस्थान से औषधीय पौधों की खेती पर प्रशिक्षण कार्यक्रम करने का आग्रह किया। कार्यक्रम में राकेश कुमार, वन परिक्षेत्र अधिकारी और कुलवंत राय गुलशन, सीनियर तकनीशियन के अलावा साविधार पंचायत प्रधान लछमी दास, उपप्रधान दयानंद वर्मा, सिलाई मास्टर, मीना देवी, धर्म पाल शर्मा सहित लगभग 50 ग्रामीणो ने भाग लिया ।
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