शिमला। अब समय आ गया है कि फिल्मों का अपना साहित्य हो। फिल्म निर्देशक गुलजार ने कहा कि आसमान वहीं रहता है, बादल आकर बरस जाते हैं । उन्होंने फिल्म देवदास का उदाहरण देते हुए कहा कि यह फिल्म कई निर्देशकों ने बनाई । अब किसका साहित्य है. ये कहना मुश्किल है। इसलिए निदेशक जो बनाता है, जो फिल्म चलाता है , उसे साहित्य बनाना बहुत जरूरी है। लोगों को भी अच्छी फिल्में देखना पसंद करनी चाहिए। किशोर कुमार के कार्यक्रम को देखने के लिए सभी चाहते हैं लेकिन जब पंडित जसराज का कार्यक्रम होता है तो वहां पर उनकी समझ रखने वाले श्रोता ही पहुंचते हैं। वहां भी सभी पहुंचे तो उनका मनोबल भी बढ़ेगा। गुलजार ने कहा कि उन्होंने सई परांजपे के साथ काफी काम काम किया। उन्होंने कहा कि एक समय था, जब उर्दू के शब्द सीखने के लिए वह मेरे पास आती थी। इस पर हम कहते थे इसकी तो फीस लगेगी । गुलजार साहब ने कहा कि इसलिए मांगी जाती थी ताकि आपको हमेशा के लिए याद रहे , लेकिन वह कभी वसूली नहीं जाती थी।
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