October 19, 2025

सनातन धर्म पर पड़े प्रभाव से कर्क चतुर्थी का व्रत बन गया करवा चौथ, कब है शुभ समय पढ़े

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शिमला.संस्कृतविद पूर्ण प्रकाश शर्मा का कहना है कि भारत में समन्वित संस्कृति का असर इस व्रत पर भी पड़ा है। सनातन भारतीय परंपरा में यह व्रत कर्क चतुर्थी के रूप में मनाया जाता रहा है। जिसमे भगवान गणेशजी के लिए इस व्रत को किया जाता है। भारतीय सनातन संस्कृति में यह पर्व सादगी और आस्था को केंद्र में रखकर मनाया जाता रहा है। प्राचीन ग्रंथो में भगवान गणपति की आराधना को विद्या बुद्धि और धन धान्य की संपन्नता के लिए किया जाता है। महीने में दो बार चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश जी की प्रसन्नता के लिए व्रत किया जाता है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को कर्क चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत अपने जीवन साथी की आयु और अभ्युदय के लिए किया जाता है। कर्क चतुर्थी ही करवा चौथ के रूप में रूढ़ हो गई। करवा की व्याख्या मिट्टी का बर्तन के रूप में की जाने लगी।

ब्रह्म मुहूर्त में सर्गी खाना नही रही भारतीय मूल परंपरा

सुबह के समय सरगी खाकर व्रत की परंपरा मूल भारतीय परंपरा नहीं रही है यह मुस्लिम धर्म की रोजा की परम्परा से आया है। छलनी से पति का चेहरा देखने का कोई प्रमाणिक शास्त्रीय भारतीय आधार नहीं है। यह प्रांतों की अंतर संस्कृति से प्रभावित होकर एक परंपरा मात्र है। इसी प्रकार करवा लेकर उसको अनाज इत्यादि से भरना इत्यादि से सब भारतीय मूल शास्त्रीय सिद्धांत न होकर काल क्रम में विकसित परंपरा मात्र है।

भारतीय परंपरा में इस प्रकार मनाया जाता है यह पर्व

भारतीय परंपरा में प्रात: काल उठकर स्नान करके साफ वस्त्र धारण किए जाते हैं। इसके बात रंगोली से गणपति अष्टदल कमल लिखकर अष्ट शक्तियों के साथ भगवान गणेश की स्थापना की जाती है। षोडशोपचार से पूजन करके गणपति का दूर्वा से पूजन किया जाता है। रात्रि में भगवान गणपति का पूजन करके और चंद्र देव की सपत्नीक पूजा करके और चंद्र दर्शन के बाद व्रत पूरा किया जाता था। इस व्रत में भगवान शिव और पार्वती का पूजन भी किया जाता है। शिव और पार्वती को विवाहित जीवन को सुखद बनाने वाले दांपत्य सुख देने वाले ईश्वर के रूप में देखा जाता है।

पौराणिक से आधुनिक मान्यताओं के बीच बहुत बदल गया करवा चौथ व्रत
हर वर्ष की भांति इस साल भी करवा चौथ को लेकर लोगों में भारी उत्साह है। बाजार परम्परागत ढंग से लेकर आधुनिक हो चुके इस व्रत का कोई भी व्यवसायिक लाभ नहीं छोड़ना चाहता। खानपान वेशभूषा से लेकर साज सज्जा तक हर ओर भावना और बाजारवाद का समन्वित रूप देखने को मिल रहा है। प्राचीन कर्क चतुर्थी से लेकर आज के करवा चौथ के रूप में स्थापित और बहु प्रसिद्ध हो चुके इस पर्व में बहुत अंतर आ चुका है। 90 के दशक के बाद करवा चौथ व्रत अब अपने प्रचंड व्यवसायिक चकाचौध सराबोर हो चुका है।

ये है इस बार का शुभ महूर्त
इस बार कर्क चतुर्थी तिथि यानी करवा चौथ 31 अक्टूबर को रात 09:30 पर प्रारंभ होगी और 01 नवंबर को रात 09:19 मिनट पर समाप्त होगी। उदया तिथि मान्य अनुसार करवा चौथ व्रत 01 नवंबर को रखा जाएगा। रात्रि 8: 20 को चंद्र दर्शन के बाद व्रत का पारण किया जा सकता है।

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