शिमला, जब तक सामाजिक सोच नहीं बदलेगी तब तक स्त्री विरूद्ध अपराध नहीं थमेंगे। यह बात संजौली महाविद्यालय में दो दिवसीय स्त्री विरूद्ध अपराध विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दौरान आई.पी.एस सौम्या सांमशिवन ने कहीं। उन्होंने कहा कि सामाजिक जागृति का सबसे ज्यादा दायित्व अध्यापकों का है, जबकि पुलिस एक सुरक्षा कवच के रूप में काम करती है। वहीं मुख्य वक्ता प्रोफेसर मीनाक्षी पॉल ने ऐसे उदाहरण सांझा किए जिसमें स्त्री के प्रति समाज की कुंठित मानसिकता नजर आती है। यही नकारात्मक सोच स्त्री पुरूष में लिंग भेद करती है। बेटी के जन्म से लेकर औरत बनने तक यदि उससे परिवार से समाज तक भेद भाव न किया जाए तभी स्त्री-पुरूष में असमानता खत्म हो सकती है। संगोष्ठी के प्रारंभिक सत्र में विषय विशेषज्ञ के रूप में प्रोफेसर मंजू जैदका, प्रोफेसर रोशन शर्मा, प्रोफेसर पूजा प्रियवंश ने स्त्री के सामाजिक , पारिवारिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति और स्वीकृतियों पर विस्तृत व्याख्यान दिये। इससे इक्कीसवीं सदी में भारतीय समाज में स्त्री की वास्तविक स्थिति का रेखांकन किया गया। संगोष्ठी में मुख्य अतिथि एवं अन्य अतिथियों का महाविद्यालय के प्राचार्य डा चंद्रभान मेहता ने स्वागत किया। उन्होंने कहा कि लम्बे अन्तरात के उपरांत आयोजित इस संगोष्ठी में बाहर से आये विद्वानों और शोधकर्ताओं द्वारा जो पत्र पढ़े जाएगें। उससे स्त्री विषयक सामाजिक धारणाओं का स्पष्टीकरण होगा। सामाजिक सोच को बदलने और निर्धारित करने में सार्थक भूमिका निभाएगा। तकनीकी सत्र में शुक्रवार को दिनेश शर्मा, मनोरमा शर्मा, सान्या कुमारी, शारदा देवी, दीक्षा, अधिराज, राजकुमारी आदि लगभग 50 प्रति भागियों ने पत्र वाचन किया। शनिवार को प्रथम सत्र में पत्र वाचन होगा और सांय काल सत्र में संगोष्ठी का समापन होगा।
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