November 25, 2024

कोरोना  के चलते गेयटी थियेटर में दो साल बाद गुंजी कलाकारों की आवाज , अनुकृति फेस्टिवल के पहले दिन गेयटी थियेटर में पुरूष नाटक का मंचन

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शिमला : भाषा एवं संस्कृति विभाग व रंगमंडल कानपुर की ओर से गेयटी थियेटर में अनुकृति फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है। तीन दिनों तक चलने वाले इस फेस्टिवल में चार नाटकों का मंचन किया जाएगा। कोरोना काल के बाद लगभग दो साल के बाद गेयटी थियेटर में कलाकारों की आवाज गुंजी। इससे पहले हर क्षेत्र खुल गया था लेकिन गेयटी थियेटर का अभियन हाल बंद पड़ा हुआ था। पहले दिन पुरूष नाटक का मंचन किया गया। इस अवसर पर पूर्व भाषा एवं संस्कृति विभाग के पूर्व निदेशक श्रीनिवास जोशी मु यातिथि व विशिष्ठ अतिथि लेखक सुदर्शन वशिष्ठ तथा भाषा एवं संस्कृति विभाग के निदेशक पंकज ललित मौजूद रहे। कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्जवल के साथ हुई। पुरूष नाटक का निर्देशन निशा वर्मा ने किया है। इस नाटक में बताया गया कि वर्तमान समय में महिलाओं, लडकियों, बहु बेटियों पर किस तरह से अत्याचार किया जा रहा है। हर एक व्यक्ति महिलाओं को बुरी नजर से देखते है। नाटक में बताया गया कि अण्णा साहब आप्टे एक आदर्श शिक्षक हैं। अपनी पत्नी तारा के साथ वैचारिक मतभेद होते हैं मगर फिर भी वह उनका साथ देती हैं। अण्णा की बेटी अंबिका स्कूल में पढ़ाती है, उसका मित्र सिद्धार्थ दलितों के हक की लड़ाई लड़ता है। अण्णा व सिद्धार्थ के बीच अक्सर नोकझोंक होती है। वहीं अंबिका की मित्र मथुरा अण्णा व तारा को कोई गंभीर मुद्दों पर सलाह देती रहती है। तभी आप्टे परिवार के शांत जीवन में बवंडर की तरह दाखिल होता है। अंबिका गुलाबराय के अनैतिक कार्यों का विरोध कर चुकी है। अंबिका को शिकस्त देने के लिए गुलाबराय कुटिल चाल चलता है। एक दिन छल से वह अंबिका को डाकबंगले बुलवाता है और उसके साथ रेप कर डालता है। मामला अदालत तक पहुंचता मगर सत्ता व संपति की ताकत के चलते फैसला गुलाबराय के पक्ष में होता है। इससे अंबिका मन की गहराई तक आहत होती है तो अण्णा को भी आघात लगता है। तारा को तो इतना गहरा सदमा लगता है कि वह खुद ही मौत को गले लगा लेती है। मुश्किलों के इस दौर में सिद्धार्थ का रवैया देख अंबिका उसे हमेशा के लिए अलविदा कह देती है। वहीं मथू अंत तक आप्टे परिवार का साथ देती है। अनुकृति रंगमंडल के सचिव डा ओमेंद्र कुमार ने बताया कि मराठी के प्रसिद्ध लेखक जयवंत दलवी के इस नाटक का प्रथम मंचन विजया मेहता के निर्देशन में 22 सित बर 1982 को शिवाजी मंदिर मुंबई में हुआ था। उन्होंने कहा कि यह नाटक मराठी भाषा में था। इसका हिन्दी में रूपांतर किया गया है।

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