संगड़ाह। हिमाचल प्रदेश किसान सभा के अध्यक्ष डॉ कुलदीप तंवर ने कहा कि, किसान सभा के आंदोलन अथवा प्रयासों से जिला सिरमौर के अधिकतर हिस्से आज बंदरों के आतंक से मुक्त हो चुके है। उन्होंने कहा कि, वर्ष 2005 में किसान सभा द्वारा गठित खेती बचाओ समिति के आंदोलन के बाद प्रदेश सरकार अथवा वन्य प्राणी विभाग द्वारा बंदरों को वाइल्डलाइफ प्रोटक्शन एक्ट के शेड्यूल 5 में रखकर वर्मिन घोषित किया गया तथा इन्हें मारने की अनुमति दी गई। विकास खंड संगड़ाह में वन्य प्राणी विभाग के सहयोग से वर्ष 2007 में किसानों ने ऑपरेशन कलिंग चलाकर 419 बंदरों को अपनी बंदूकों से मारा था। इसके बाद राज्य सरकार द्वारा जहां बंदरों की नसबंदी की गई, वहीं किसानों ने विभिन्न उपायों से जिला के अधिकतर हिस्सों को बंदरों के आतंक से मुक्त करवा डाला। डॉ तंवर ने कहा कि, पिछले करीब तीन दशक से जिला सिरमौर के कईं हिस्सों के लोग बंदरों से आतंकित होकर से खेती छोड़ रहे थे और इनमें से कुछ बड़े शहरों में मजदूरी के लिए पलायन पर मजबूर हो गए थे। डॉ तनवर ने कहा कि, जिला के अधिकतर हिस्से आज बंदरों के आतंक से मुक्त है और सिरमौर नगदी फसलों के मामले में सोलन के बाद प्रदेश का दूसरा जिला बना है। सिरमौर के किसान टमाटर, मटर, अदरक, आलू व गोभी आदि नकदी फसलों से पहले से ज्यादा कमाई कर रहे हैं। जिला सिरमौर के दो दिवसीय प्रवास पर मौजूद किसान प्रतिनिधिमंडल में शामिल डॉ तनवर के अलावा राज्य किसान सभा सचिव डॉ ओंकार शाद व जिला सिरमौर इकाई के अध्यक्ष रमेश वर्मा सहित आधा दर्जन नेताओं द्वारा शनिवार को संगड़ाह मे स्थानीय किसानो से उनकी समस्याओं पर चर्चा की गई।

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